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________________ (१२७) उपचारको दिखाते है. जैसे पालीका इच्छक लकड़को ग्रहण करता है. मतलब यह - पालीके लिये, ग्रहण किये हुए काष्टको हाथ में लेकर जानेवाला पुरुष 'पाली हस्तक जाता है, इसी प्रकार दुधको ग्रहण करता हुआ भी घृतको ग्रहण करता है ऐसा भी बोला जाता है. अब हेतुके अभाव में दोनोका (कार्यकारणका) अभाव दिखाते है, कारणभावको छोड़कर पहले कहे हुए द्वार और उपचारका संभव नहीं है. " अथ कालस्य कार्यमात्रं प्रति कारणत्वात् कथं न पंचदश्यामपि चतुर्दशीलक्षणकार्योपचार इत्याशङ्कामपाकरोति” अर्थः- तमाम कार्यके प्रति कालका कारण पना होने से पूर्णिमा के अन्दर चतुर्दशीका उपचार क्यों न किया जाय ? ऐसी शंकाको दूर करते हैं. "जय वि ह जिणममयमि अ कालो सदस्कारणं भणिओ । तहपि अ चउदसीए नो जुज्जह पुष्णिमाहेऊ ॥ १० ॥ 1 टीका - यद्यपि हु-निश्चितं जिनसमये जिनशासने कालः, स्वभावादि चतुष्क सह कृत इत्याध्याहार्य, सर्वस्यापि (कार्यस्य) कारणं भणितस्तथापि पूर्णिमा तावच्चतुर्दश्या हेतुः कारणं न युज्यते, एवेति, अत्र चकार एवकारार्थः, कारण लक्षणाभावादिति ॥ १० ॥ - अर्थ :- जोकि " हु" निश्चित करके जैनशासन में, काल, स्वभावादि चारो सह सबहीका कारण कहा है तो भी पूर्णिमा रुपी कालचतुर्दशीका कारण नहीं होता है सबब कारण लक्षणका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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