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पूर्वअपर्वतिथिका क्षय ही होता है. नकि आपकी मान्यतानुसार पूर्वतिथिमें (क्षयतिथिकी) आराधना करना. क्षये पूर्वाका प्रघोष, जो पूर्वतिथिमें आराधना करनेके लिये होता तो "पूर्वस्यां" ऐसाही प्रयोग होता, नकि-"पूर्वा" शायद तत्वतरंगिणीकारको आपकी मान्यता मुताबिक "तयोः द्वयोः” प्रयोग (शब्द) जैसें नही मिले, वैसेही भगवान् उमास्वातीजी माहाराजको भी " पूर्वस्यां" ऐसा प्रयोग नहीं मिलाः कि-जिससे "पूर्वा" ऐसा प्रयोग लेना पड़ा ! क्यों, ऐसाही है न?
इन्द्र०-नहीं ऐसा तो हम नहीं कह सकते है, कि 'पूर्वस्या' प्रयोग नहीं मिलनेसे "पूर्वा" प्रयोग उपयोगमें लिया है.
गुला०-(वकीलसा० से) वकीलसाहब ! अब आप इनके गुरूजीके गलतीरूप कंकरोंको निकालना बंद कीजिये! क्योंकि स्थालीपुलाक न्यायसे इन दो गाथासे ही मालूम हो चुका है कि जंबुविन्ने शास्त्रकारके नामसे कितना ही उलटपुलट लिख दिया है! अबतो आप मुख्य २ उदेशको ही साबीत कीजिये, और उसका जवाब इन्द्रमलजीसे लीजिये. (इन्द्रमलजीकी) ओर देखकर) क्यों साहब ! ऐसे फजुल टाईम गुमानेसे क्या फायदा?
__इन्द्र०-आजतो अब इस विषयको बंद ही रखीये ! सबब कुंवरसाहबको आये भी बहुत वक्त हुआ है.
वकी०-तो कल किसवक्त पधारेंगे? इन्द्र०-आज आये थे उसी वक्त पर आवेंगे. वकी०-पंडितजीको भी साथ लिवालानेका ख्याल रखना, इन्द्र०-बहुत अच्छा.
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