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________________ (१०१) व्यक्ति हैं, वह एक खुरसी पर बैठेंगा. इन्द्र०-नहीं, आगन्तुक राजकुमार और पूर्वस्थित राजकुमार ऐसे दोनोही कुमार दोनों खुरसीयोंपर बैठेंगे, और तीसरा व्यक्ति नीचेही बैठेगा. वकी०-इसी मुताबिक ही उस वक्त तेरसका क्षय होकर चतुर्दशी और पूर्णिमा स्वतंत्र ही रहेगी. इससे आपका यह प्रश्न तो उड़ही जाता है कि-पूर्णिमाके क्षयमें त्रयोदशीका क्षय कैसे? और दूसरी एक मोटी आपत्ति आपको आवेगी. वहतो मुनाफेमें! इन्द्र०-कैसे? वकी०-जब भाद्रपद शुक्ल ४ का क्षय होगा, तब आप संवत्सरी किसदिन करेंगे? इन्द्र०-भाद्रपद शुक्ल तृतीयाको. वकी०-उसदिन आप बोलेंगे क्या? इन्द्र०-'आज तिथि तृतीया है और आराधना चतुर्थीकी हैं' ऐसा बोलेंगे! वकी०-आपको आराधना चाहे चतुर्थी की, हो लेकिन संवत्सरी तो तृतीया ही को हैं न ? इन्द्र०-इसमें इनकार कोन कर सकता हैं. वकी०-दूसरे वर्ष आप संवत्सरी किस तिथिको करेंगे? इन्द्र०-भाद्रपद शुक्ल ४ को ही करेंगे. वकी-जब आपकी मान्यतानुसार पहले वर्ष तृतीयाको संवत्सरी, और दुसरे वर्ष चतुर्थीको संवत्सरी करना शास्त्रसिद्ध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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