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________________ वकी०-यह कोनसे शब्दका रूप है ? कोनसा लिंग है ? किस विभक्तिका, कोनसा वचन है ? इन्द्र०-यह 'तत्' शब्दका स्त्रीलिंगमें षष्ठीका एकवचन है, वकी-एकवचनसें एक तिथिका अर्थ होता है, यादो का ? इन्द्र०-एकवचन- अर्थतों एक ही का होता है. वकी-तो इस एकवचनसें दो तिथिका अर्थ करना आप कहांसे सिखे हो? इन्द्र०-परंतु साथमें अपि शब्द पड़ा है न. वकी०-वाहजी वाह ! शास्त्रकारको ढुंढ़ते हुंढ़ते कहीपरभी तयोः अगर द्वयोः (द्विवचनात्मक) प्रयोग नहीं मिला तब 'तस्याः' लेकर बादमेंही यहां 'अपि' शब्द लिया होगा क्यों ? इन्द्र०-'तयोः' अगर 'द्वयोः' ऐसा प्रयोग ग्रन्थकारको नहीं मिला ऐसा तो मैं नहीं कह सकता. वकी०-तब आप क्या कह सकते है ? इन्द्र०-" द्वयोरपि विद्यमानत्वेन " इसीसे दोनोका शामिलपना साबीत होता है. वकी०-'दोनोंकी आराधना हो गई 'और' दोनोका शामिलपना है, इन दोनो वाक्यको आप एकही मानते हो क्या ? इन्द्र०-खैर जाने दीजिये ! शामिलपना तो आपको मान्य है न? वकी०-आराधनामें बिलकुल ही नहीं. इन्द्र०-यह कैसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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