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________________ सही न जाती मुझ से भारी ॥ जनम मरणकी पीडजी वीरजी धीरजी ॥ आरती जय अन्तर्यामी स्वामी जय अन्तर्यामी स्वामी जय अन्तर्यामी । सुखकारी दुखहारी त्रिभुवन के स्वामी ॥ नाथ निरञ्जन भवदुख भंजन सन्तन प्राधारा ॥ पाप निकन्दन भविजन सम्पति दातारा ॥ करुणासिन्धु दयालु दयानिधि जय२ गुणधारी ॥ वांछित श्री जिन सब जन सुखकारी ॥ ज्ञानप्रकाशी शिवपुरवासी अविनाशी अविकार ॥ अलख अगोचर शिवमय शिवरमणी भरतार ॥ विमल कृतारक कलिमलधारक तुमहो दीनदयाल ॥ जय जय कारक तारक घट जीवन रक्षपाल । न्यामत गुण गावें कर्म नशाय चरण सिर नावें ॥ पुनि पुनि अरज सुणिये शिव कमला पावें ॥ जय जय श्रीजिनराज जय जय श्री जिनराज आज मिलियो मुझ स्वामी ॥ अविनाशी अकलंक रूप जग अन्तर्यामी ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034946
Book TitleMahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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