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________________ (५०) देखे भी न थे पहले दीदार जैसे तुम हां दीदार जैसे तुम । भेटे भी न थे दिल से भगवान हमारे ॥ तू एक० ॥१॥ आखिर में मुके ख्याल तो पाता है लेकिन प्राता है लेकिन । रहते हैं तेरे शरणे शालन के सितारे ॥ तू एक० ॥ २॥ कुरबान है जीवन तेरे बचनों का इशारा वचनों का इशारा । हमने सभी दिन आज तत बेकार गुजारे ॥ तू एक० ॥३॥ ___ अगर जिनदेव के चरणों में अगर जिनदेव के चरणों में तेरा ध्यान हो जाता । तो इस संसार सागर से तेरा उद्धार हो जाता ॥ न होती जगत में ख्वारी न बढती कर्म बीमारी । जमाना पूजता सारा गले का हार हो जाता ॥ रोशनी ज्ञान की खिलती दीवाली दिल में हो जाती । हृदय मंदिर में भगवन का तुझे दीदार हो जाता ॥ परेशानी न हैरानी दशा हो जाती मस्तानी । धर्म का प्याला पी लेता तो बेडा पार हो जाता ॥ जी का बिस्तरा होता व चादर आसमां बनता । मोत गद्दी पर फिर प्यारे तेरा घरबार हो जाता ॥ चढाते देवता तेरे चरण की धूल मस्तक पर । अगर जिनदेव की भक्ति में मन इकतार हो जाता ॥ 'राम' जपता अगर माला का मनका एक भक्ति से । तो तेरा घर ही भक्तों के लिये दरबार हो जाता ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034946
Book TitleMahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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