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काल समीप होते हुए भी इस कार्य के लिये परिश्रम किया है इनमें विद्यार्थी नजरसिंह, भूपेन्द्रसिंह, बसन्तीलाल व महेन्द्रकुमार तथा विजयसिंह का कार्य प्रशंसनीय है । जिनने कई नए भजन व संवाद संग्रह करने में व लिखने में सहायता दी । जितना अधिक आप इस पुस्तक से लाभ उठायेंगे उतनाही मैं अपना परिश्रम सफल मानूंगा । आपको सच्चे आनन्द की प्राप्ति में यह भजनावली सहायक हो । यही भावना है । ॐ शांति शांति शांति ।
श्री केशरियाजी जैन गुरुकुल, चित्तौडगढ ( राजस्थान ) २७ फरवरी १६५०
विनीतफतहचन्द श्रीलालजीं महात्मा देलवाडा
-: आभार प्रदर्शन :
निम्न लिखित महानुभावों ने इस पुस्तक प्रकाशन में सहायता देकर उदारता दिखाई है उनका मैं पूर्ण आभारी हूँ । २१) श्रीमान् कस्तूरचन्दजी भंवरलालजी निम्बाहेडा २१) श्रीमान् तेजमलजी कोठारी रामपुरा २१) श्रीमान् लालचन्दजी कपूरचन्दजी चारभुजारोड
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