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वर्ग धर्म व ईश्वर को ढोंग मानता है उसकी अवहेलना करता है । तब प्रार्थना को दिनचर्या में स्थान कैसे मिले । प्रार्थना में वह शक्ति है कि पापी भी महान आत्मा बन जाता है । ईश्वरत्त्व को प्राप्त कर लेता है । मानव की दानवता दूर हो जाती है । आज जो मनुष्य पशुता से भी बढ कर मनोवृत्ति को अपनाये हुए है और एक दूसरे की घात करने को तैयार है उनकी उद्विग्न प्रात्मा को शांति देने की शक्ति केवल प्रार्थना में ही है । प्रार्थना में बड़ा बल है । गांधीजी ने गोलमेज कांफ्रेन्स लन्दन से आकर कहा था कि "प्रार्थना मेरे जीवन की रतिका रही है । इसके बिना मैं बहुत पहिले ही पागल होगया होता ।" ज्यों २ प्रार्थना में अनुराग बढेगा त्यों २ निर्भयता प्राती जायगी । प्रात्मशुद्धि के मार्ग पर आरूढ व्यक्ति को मृत्यु मित्र समान तथा धन, क्षणिक और नाशवान प्रतीत होता है। विद्यार्थी अवस्था में ही यदि प्रार्थना की प्रादत डाल दी जाय तो वह जीवन भर बनी रहेगी । उत्तम तो यह है कि घर घर में प्रार्थना हो, सुबह व शाम कुटुम्ब के सब लोग मिल कर प्रार्थना करें जिसके शुभ संस्कार भावी सन्तान पर पडे ।
इस संग्रह में मैंने विशाल दृष्टि से काम लिया राष्ट्रीय प्रार्थना व गजलों को धार्मिक स्तवनों से
- दिया हैं । साथ ही पीछे की तरफ कुछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com