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( २४ ) दे शक्ति हमें सुख सिन्धु प्रभु कर्त्तव्य धर्म पर डटे रहें । पर सेवा करें उपकार करें हम सब तुम पर बलिहारी हैं ॥ जो कष्ट हमें चकचूर करें उनको जड से नाबूद करो॥ मन मस्त करो तन चुस्त करो हम मूढ नादान अनारी हैं । निज देश जाति पर कष्ट डे बलिदान खुशी से हो जावें । वही पौरुष हमको दे भगवन् हम तेरे दर के भिखारी हैं ॥ हम भूले हुए हैं भटक रहे कोई सच्चा मार्ग बता दो हमें । धनधाम दो यशदो दयालु भगवन फतह ने विनती गुजारी है ।
दरश पर वारि जावेंदरश पर वारि जावें त्रिशला नन्दा । सब मन्त्रों में नवकार बडो है, तारों में जिमि चन्दा ॥१॥ सब धर्मों में दया धर्म बडो है, सब जल में जिमि गंगा ॥२॥ यों जिनशासन देव बडो है श्री महावीर जिनन्दा ॥३॥
दरश पर वारि जावें त्रिशलानंदा॥ नाम जपन क्यों छोड दिया.. नाम जपन क्यों छोड दिया। क्रोध न छोडा झूठ न छोडा, सत्य वचन क्यों छोड दिया ॥१॥ झूठे जगमें दिल ललचा कर, असल वतन क्यों छोड दिया ॥२॥ कोडी को तो खूब सँभाला, लाल रतन क्यों छोड दिया ॥३॥ जिहिसुमिरन ते अति सुखपावे सो सुमिरन क्यों छोड दिया ॥४॥ खालिस इक भगवान भरोसे, तन मन धन क्यों न छोड दिया ॥५॥
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