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( १३ )
जिनदेव तेरे चरण मेंजिनदेव तेरे चरण में मुझे ऐसा दृढ विश्वास हो । विश्व समर में हे प्रभो मुझे एक तेरी प्राश हो । कर्तव्य पथ से जो डिगाने विघ्नगण आवे मुझे । सन्तोष भक्ति अरु दया का मन्त्र मेरे पास हो ॥ १॥ सब विश्व में ऐसी बहा दूं प्रेम की मन्दाकिनी। दिल में तडफ हो प्रेम की अरु प्रेम जल की प्यास हो ॥२॥ निज भाव भाषा मेष का गौरव मुझे दिन रात हो। निज देश हित ये प्राण हो और मन कभी न निराश हो ॥३॥ संसार सागर में न भटके नाव मेरी बीच में। मैं खुद खिवय्या बन सकू वह शक्ति मेरे पास हो॥ ४॥ मैं बालपन में ब्रह्मचारी रह सभी विद्या पढूं । यौवन दशा में बन के श्रावक अन्त में सन्यास हो ॥ ५ ॥ सह प्रात्मा ही बन सकी है नाथ खुद परमात्मा । हे नाथ मेरी आत्मा का अन्त मोक्ष निघास हो ॥ ६॥
प्रभु मोहे ऐसी करो बक्षीस प्रभु मोहे ऐसी करो बक्षीस । द्वार द्वार मैं भटकू नाहिं तुम बिन किंसिय नमूना शीश ॥
प्रभु मोहे ऐली करो पक्षीस ॥१॥
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