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(६५) पाम्यो प्रभू नरभव छता रण मां पड्या जेवू थयु ॥ धोवी तणा कुत्ता समू मम जीवन सहु ऐले गयु ॥ हुँ कामधेनु. कल्पतरु चिन्तामणि ना प्यार मां । खोटा जता झख्यो घj धनी लुब्ध आ संसार मां ॥ जे प्रकट सुख देनार रहारो धर्म ते सेव्यो नहीं । मुझ मूर्ख भावो ने निहाली नाथ कर करुणा कई ॥ मै भोग सारा चिन्तव्या ने रोग सम चिन्तव्या नहीं। प्रागमन इच्छ्यु धन तणू पण मृत्यु ने पिछ्यु नहीं ॥ नहीं चिन्तव्युं मैं नर्फ काराग्रह समी के नारीयो । मधु विंदु नी अाशा महीं भय मात्र हुँ भूलि गयो । हुँ शुद्ध प्राचारो वडे साधु हृदय मां नव रह्यो । करी काम पर उपकार ना यश पण उपार्जन नव को ॥ वली तीर्थ ना उद्धार आदि कोई कार्यो नव कऱ्या । फोगट अरे! या लत चौरासी तणा फेरा फऱ्या ॥ गुरु वाणी मां वैराग्य केरो रंग लान्यो नहीं अने । दुर्जन तणा वाक्यो महीं शांति मले क्या थी मने ॥ तरूं केम हूं संसार श्राध्यात्म तोके नहीं जरी । तूटेल तलिया नो घडो जल थी भराये केम करी ॥ मैं परभवे नथी पुण्य कीधो ने नी फेरतो हजी । तो आवता भव मां कहीं क्या थी थशे ऐ नाथजी । भूत भावी ने साम्प्रत तणो भवनाथ हुँ हारी गयो ।
स्वामी त्रिशंकु जेम टु प्राकाश माँ लटकी रही । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com