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१२) सर्वज्ञ छो स्वामी वली सिरदार अतिशय सर्व ना । घणु जीवतुं घणु जीवतुं भंडार ज्ञान कला तणा ॥ त्रण जगत ना आधार ने अवतार है करुणा तणा । वली वैद्य है दुर्वार श्रा संसार ना दुःखो तणा ॥ वितराग वल्लभ विश्व ना तुझ पास अरजी उच्चरूं । जाणो छता पण कही अने या हृदय हूं खाली करूं ॥ शृं बालको मां बाप पासे बालक्रीडा नव करे । ने मुक्ख मां थी जेम श्रावे तेम शुं नव उच्चरे ॥ तेमज तमारी पास तारक अाज भोला भाव थी । जेवु बन्यू तेवू कहूं तेमां कशू खोटूं नथी ॥ मैं दान तो दीधु नहीं ने शील पण पाल्युं नहीं । तप थी दमी काया नहीं शुभ भाव पण भाव्यु नहीं ॥ ए चार भेदे धर्म नां थी कांई पण प्रभु मैं नव कन्यु । म्हारूं भ्रमण भवसागरे निष्फल गयु निष्फल गयु ॥ हूं क्रोध अग्नि थी बल्यो वली लोभ सर्प डस्यो मने । गल्यो मान रुपी अजगरे हूं केम करि ध्याऊं तने ॥ मन मारूं माया जाल मां मोहन सदा मुझाय छ । चडी चार चोरो हाथ मां चेतन घणो चगदाय छ । मैं परभवे के प्रा भवे पण हित कांई कन्यु नहीं । ते थी करी संसार मां सुख अल्प पण पाम्युं नहीं ॥ जन्मो अमारा जिनजी भव पूर्ण करवा ने थया । प्रावेल बाजी हाथ मां प्रज्ञान थी हारी गया ॥
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