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चातुर्मास करने की स्वीकृति दे दी थी । अन्यथा मेरा बुढ़ापा सुधारने को अवश्य आप की सेवा में उपस्थित हो जाता ।
मेरा बुढापा सुधारने का शौभाग्य तो शायद आप के नशीब में नहीं लिखा होगा, तथापि आप की इस शुभ भावना के लिये तो मैं आप का महान् उपकार ही समझता हूं ।
खैर ! आप की शुभ भावना यदि किसी का सुधार-कल्याण करने की ही है तो मेरी निस्वत प्राप के पूर्वजों के जन्म कई प्रकार से बिगड़े हुए पुराने पोथों में पडे हैं उन्हें सुधार कर कृतकृत्य बनें । शायद आप की स्मृति में न हो तो उसके लिए यह छोटासा लेख मैं आज आप की सेवा में भेज रहा हूं। यदि आप की दीर्घ भावना इतना सा छोटे लेख से तृप्त न हो तो फिर कभी समय पाकर विस्तृत लेख लिख आप को संतुष्ट कर दूँगा । उम्मेद है कि अभी तो आप इतने से ही संतोष कर लेंगे ।
सोजत सिटी ( मारवाड़ )
आप का कृपाकांक्षी
ता. १-१०-३७
-ज्ञानसुन्दर—
१ नोट - इस पत्र की भाषा इतनी अप्रेल है कि सभ्य मनुष्य लिख तो क्या सके पर पढने में भी घृणा करते करते हैं । पत्र के लिखनेवाला की योग्यता कुलीनता और द्वेषाग्नि का परिचय स्वयं यह पत्र ही करा रहा हैं सिवाय नीच मनुष्य के पूर्वाचार्यों पर मिथ्या कलंक कौन लगा सकता है ? खैर ! मिथ्या आक्षेपों का निवारण मिथ्या आक्षेपों से नहीं पर सत्य से ही हो सकता हैं, जिस का दिग्दर्शन इस किताब में करवाया गया हैं जरा ध्यान लगा कर पढ़े ।
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