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महावीर के ३१ वें पट्टधर आचार्य यशोभद्रसूरि हुए और इन यशोभद्रसूरि से चन्द्रकुल में दो शाखाएँ हुई जैसे कि:आचार्य यशोभद्रसूरि
प्रद्युम्न सूरि
मानदेवसूरि
विमलचंद्रसूरि
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विमलचंद्रसूरि
देवसूर
नेमिचन्द्रसूरि
उद्योतनसूरि (वि. दशवीं शताब्दी) उद्योतनमृरि (वि. दशवीं शताब्दी)
"
इस शाखा में आगे चल कर
इस शाखा में आगे चल कर ४४ में पट्टधर जगञ्चन्द्रसूरि से चन्द्रकुलका नाम तपागच्छ हुआ"
४४ पट्टधर जिनदत्तसूरि से चन्द्रकुल का खरतर नाम हुआ'
उपर्युक्त वंशावलि से पाया जाता है कि उस समय उद्योतनसूरि नाम के दो आचार्य हुए होगे । एक प्रद्युम्न सूरि की शाखा में विमलचंद्र के शिष्य और सर्वदेव के गुरु | दूसरे - विमलचंद्र शाखा में नेमिचन्द्र के शिष्य और वर्धमान के गुरु । यही कारण है कि तपागच्छ की पट्टावली में लिखा है कि उद्योतनसूरिने वड़वक्ष के नीचे सर्वदेवादि आठ आचार्यों को सूरिपद देने से वनवासी गच्छ का नाम बड़गच्छ हुआ । और खरतरगच्छ की पट्टावली में लिखा है कि- वर्धमानादि ८४ शिष्यों को उद्योतनसूरि ने आचार्यपद देने से बडगच्छ नाम हुआ । अंचलगच्छ की शतपदी में इन से भिन्न कुछ और ही लिखा है। वहां लिखते हैं कि केवल एक सर्वदेवसूरिको ही बड़वृक्ष के नीचे आचार्य बनाने से वनवासी गच्छ
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