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________________ कणयामरविरड्यउ [1. 14,9किं वम्महु आयउ तहिं वण्णमि तं सुंदर भावइ महो मण्णामि । आयण्णिवि तं वणवालु तित्थु खणि गयउ वियंभिउ मयणु जित्थु। 10 घत्ता-ता पेक्खिवि सो णरु तं वणु सुंदरु हरिसइं तरलिउ एकै खणु । णउ अम्हहं पुण्णई फलियउ धण्णई इउ हियई वियप्पिउ तेण पुणु ॥१४॥ 15 5 The forest-guard discovers her and takes her home, वणवालु वणेणे य परिभमेह वणरिद्धिहे कारणु सो णिएइ । ता परिमलमीसिउ पवणु आउ वणरिद्धि कहइ ण णियसहाउ । मग्गेण य आयउ पवणु जेण गउ रक्खवालु गंधेण तेण । ते तरुतले दिट्ठी दिव्व बाल णं वणसिरि सोहइ गुणवमाल । पुणु चितइ णउ सामण्ण एह रूवेण अउन्वी दिव्वदेह। बुल्लाविय पुणु णिय सुअ भणेवि उहाविय सा करयलु धरेवि।। किं दुम्मण अच्छहि पुत्ति एहि लइ चलहि जाहि महो तणए गेहे । तहो वयणु सुणेविणु सवणरम्मु संचल्लिय कामिणि तासु हम्मु । वणवालहो घरि सा वसह जाम कुसुमत्तएं चिंतिउ हियई ताम। घत्ता- एह णारि विसिट्टी ते तहिं दिट्टी किंणरि किं विजाहरिय। णयणाण पियारी महिलहं सारी चंपयगोरी गुणभरिय ॥ १५॥ 10 16 Her beauty makes Kusumadatta jealous of her. तणुरूवरिद्धि एह अइविहाइ णहरूबई रविससि सरिय णाई। सारउ सरीरु इच्छंतियाए इह सारिउ जंघउ कयलियाए। करिराएं मण्णेवि करु ण चंगु णं सेविउ मेरुहि आहि तुंगु । सुरगिरिणा गणियउ कढिण एह । अणुसरिय णियबहो ललियदेह । पिडुलराणु मणहरु सोणियाहिं घर माण्णवि मयणे विहिउ ताहिं। मयरहरदं गहिरिम णाहियाहे णं धीय भणेविण दिण्ण आहे। तहिं लिहियई पीणुण्णयथणाई णं कुंभिहे कुंभई णववणाई। २ N एकखणु. 15. १ वणे य. 16.1J तह. 5 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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