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सर्वथा ब्रह्मचर्य पालन में समर्थ न हो तो ऋतुकाल में - संतानार्थ अथवा वेद विकार शमनार्थ निज स्त्री से उदासीनता - पूर्वक विकार शमन करे | परन्तु विषय में अत्यन्त रक्त होकर
भोग न करे । गृहस्थी श्रावक का यह संक्षेप से रात्रि - कृत्य कहा है। वैसे तो इस पुस्तक में गृहस्थ-धर्म का वर्णन भी संक्षेप से किया है ।
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