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बारह व्रत श्रावक बारह व्रत धारण करे, यह पहिले कह चुके हैं। वे बारह व्रत ये हैं
(१) स्थूल प्राणातिपात-विरमण व्रत-निरपराधी त्रस जीव की संकल्प हिंसा का त्याग करे ।
(२) स्थूल मृषावाद-विरमण व्रत-१ द्विपद । २ चतुष्पद । ३ अपद अर्थात् भूमि आदि स्थावरं वस्तु सम्बन्धी, इस लिये
४ १ संकल्प हिंसा, २ औद्योगिक हिंसा, ३ आरम्भी हिंसा और ४ विरोधिनी हिंसा। इस प्रकार हिंसा को चार भागों में विभक्त कर सकते हैं । इनमें से गृहस्थी को संकल्प हिंसा का त्याग होता है। चारों की संक्षिप्त रूप रेख। यहां लिखी जाती है:
१ संकल्प हिंसा-उसे कहते हैं जिसमें संकल्प करके किसी जीव को मारा अथवा कष्ट दिया जावे। जैसे कोइ कीडी अथवा ओर कोई जीव सामने जा रहा है, उस समय उसे बिना कारण ही केवल हिंसा के भाव से प्राण रहित करना संकल्पी हिंसा है।
२ औद्योगिक हिंसा-उसे कहते हैं कि जीवन निर्वाह के लिये खेती, व्यापार, कारखाने खोलने, वाणिज्य आदि करने में होती है।
३ आरम्भी हिंसा-उसे कहते हैं जो कि भोजनादि बनाने में होती है, असे कायों में प्रयत्न करने पर भी अनजान में छोटे छोटे जीव मर जाते हैं।
४ विरोधिनी हिंसा-उसे कहते हैं जहाँ पर दूसरे जीव को मारने या उसे दुःख पहुँचाने के तो भाव नहीं होते, परन्तु दूसरा जीव अपने को पहिले मारना चाहे या दुःख देना चाहे तो असे अवसर पर
अपनी रक्षा के लिए विरोध करने में जीव बध हो जाते है । अपनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com