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________________ इनमें से सूर्य और चन्द्र तिर्यक्-लोक में असंख्य हैं और मंगल आदि ८८ जाति के ग्रह, अभिजित आदि २८ जाति के नक्षत्र और तारे ये सब तिर्यक-लोक में असंख्य हैं। यह सब ज्योतिष्क देवता रूप तीसरी जाति का देवलोक है। वैमानिक देवताओं में चौथा भेद वैमानिक देवताओं का है, ज्योतिष्क देवताओं के ऊपर असंख्य कोड़ी-कोड़ी योजन के अन्तर पर १ सौधर्म, २ ईशान ये दो देव लोक बराबर है। इनके उपर असंख्य योजन के अन्तर पर ३ सनत्कुमार और ४ माहेन्द्र ये दो देवलोक हैं, इसी प्रकार असंख्य असंख्य योजन के अन्तर पर अगले-ऊपर के स्वर्ग है, उनके नाम क्रमशः ये है-५ ब्रह्म, ६लंतक, ७ शुक्र, ८ सहस्त्रार, ९ आनत, १० प्राणत. ११ आरण और १२ अच्युत । इनके आगे उपर को नव प्रैवेयक देव लोक हैं, उनके नाम ये है–१ भद्र, २ सुभद्र, ३ सुजात, ४ सौमनस, ५ प्रियदर्शन, ६ सुदर्शन, ७ अमोघ, ८ सुप्रबुद्ध और ९ यशोधर । इनके ऊपर पांच अनुत्तर विमान बराबर में हैं उनके नाम ये हैं-१-पूर्व दिशा में विजय, २-दक्षिण दिशा में वैजयन्त, ३-पश्चिम में जयन्त और ४-उत्तर में अपराजित । इस प्रकार ये देव चारों दिशाओं में हैं और इनके मध्य में ५-सर्वार्थसिद्ध हैं। इस प्रकार कुल मिलकर वैमानिक देवताओं के २६ भेद है। इन सब देवताओं के भुवन, नगर, विमान आदि का स्वरूप लम्बाई चौड़ाई, एवं ये सब आकाश में किस प्रकार खड़े हैं तथा इनमें रहने वाले देवताओं को किस प्रकार के सुख हैं, तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034895
Book TitleJainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabh Smarak Nidhi
PublisherVallabh Smarak Nidhi
Publication Year1957
Total Pages98
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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