________________
और कार्मणः इन सबका साधन द्वारा आत्मा से अत्यन्त वियोग होना अर्थात् उनका फिर कभी बन्ध न होना मोक्ष तत्त्व कहलाता है।
षड्-द्रव्य १ धर्मास्तीकाय-जो पदार्थ जीव और पुद्गल के चलने में सहायक होता है, उसे धर्मास्तिकाय कहते हैं, जैसे कि मछली के चलने में जल सहायक होता है।
२ अधर्मास्तिकाय-जो पदार्थ जीव और पुद्गल के ठहरने में सहायक होता है उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं, जैसे कि मुसाफिर को वृक्ष छाया ठहरने में सहायक होती है।
३ आकाशास्तिकाय-जो सब पदार्थों के रहने के लिये अवकाश दे उसे आकाशास्तिकाय कहते हैं। जैसे बेरों के लिये फँडा*।
४ जीवास्तिकाय-यह चैतन्यादि लक्षणों वाला है, इस का वर्णन पहिले जीवतत्त्व में किया जा चुका है।
५ पुद्गलास्तिकाय-कारण रूप परमाणुओं से लेकर सर्व कार्य रूप, रस गन्ध, स्पर्श, शब्द, आतप, उद्योत, छाया, पृथ्वी,
* कार्मण शरीर-जीव के साथ लगे हुए कमों का विकार रूप सब शरीरों का कारण रूप कार्मण कहलाते है।
तैजस और कार्मण शरीर का अनादि काल से जीव के साथ सम्बन्ध है और विना इनके वियोग के मोक्ष नहीं होता ।
* ड्डे में बेर आधेय और कूडा आधार, इसी तरह आकाश सर्व पदाथों का आधार है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com