SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री परमात्मने नमः जैन-धर्म का स्वरूप संसार की नित्यानित्यता [ जैन दर्शन, संसार एवं संसार के समस्त पदार्थों पर हर पहलू से विचार करता है, जैन सिद्धान्त के मन्तव्यानुसार यह संसार किसी अपेक्षा से अनादि, अनंत, नित्य-शाश्वत है एवं किसी अपेक्षा से यह अनित्य-नाशवान है ] अर्थात्__ यह संसार द्रव्यार्थिक नय* की अपेक्षा से अनादि, अनन्त और सदा शाश्वत है और पर्यायार्थिक नयां की अपेक्षा से समय समय में उत्पत्ति और विनाश वाला है। ___* द्रव्यार्थिक नय सामान्य का बोधक है। द्रव्य अर्थात् मूल पदार्थ को अपेक्षा से, जैसे-घडे के लिये मूल पदार्थ मिट्टी है, घडा रहे या उसका नाश हो जावे, परन्तु मूल पदार्थ मिट्टी किसी न किसी रूप में अवश्व विद्यमान होगी। पर्यायार्थिक नय, विशेष का अथवा गुण और पर्याय का बोधक है। मूल द्रव्य के परिणाम (आकार) को पर्याय कहते हैं, जैसे-मूल द्रव्य मिट्टी या उसके परमाणु हैं, उसका घडे के रूप में जो परिवर्तन है, उस परिणाम को पर्याय कहते है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034895
Book TitleJainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabh Smarak Nidhi
PublisherVallabh Smarak Nidhi
Publication Year1957
Total Pages98
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy