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________________ (२५) और जहां विरोध दीखता हो उसको छोड देना चाहिये. इन भावनाओंके प्रचारसे ऐकता जैनियोंमेंही क्या किंतु सभी भारतवर्ष और पृथ्वी मंडलके मनुष्योंमें हो सकती है. सजन महाशय, सभाओंका स्थापन करना और उनका बारबार एकत्रित होना ये सब ऐकता बढानेकेही तो कारण हैं. सभाओंसे ही बडे बडे कार्य हुए हैं; सभामें बड़ी शक्ती रहती है. एकके अंकके पास दूसरा एकका अंक रखनेसे ग्यारा समझे जाते हैं; और तीसरा एकका अंक फिर रखनेसे एकसो ग्यारा कहे जाते हैं. इनका पृथकरण करनेसे एक एक तीन करके रहजाते हैं. इस प्रकार अनेकोंका एकत्रित होनेसे संघशक्ती बडी भारी होजाती है. यह समझकर सभाओंमे संमिलित होकर ही उन्नति करनेमें सबको लगना चाहिये. प्रिय सज्जनो, मैनें आपका बहुत बखत लिया सो आप मुझे क्षमा करेंगे. लेकिन सभामें बहुतसे प्रस्ताव पास होते हैं उनकी अमलवारी होती नहीं इसीलिये बहुतसे प्रस्ताव पास करनेमें कुछ फायदा नहीं ऐसा एक आक्षेप बांचनेमे आया सो कथंचित् सत्य है. प्रस्ताव पास होजानेपर उसकी अमलवारी होजानेसे उसका फल जल्दी दृष्टीगोचर होगा इसमें संदेह नहीं. परंतु प्रस्ताव पास कियेबाद अमलबारी करनेको अपनेपास सामग्री न हो तोभी प्रस्ताव पास करना निरर्थक नहीं है ऐसा मैं समझता हूं. क्योंकि, प्रतिवर्ष सभाओंके वार्षिक अधिवेशनमें अथवा नैमित्तिक अधिवेशनमें जो प्रस्ताव आते हैं उन प्रस्तावोंको रखनेवाले, समर्थन करनेवाले अलग अलग पुरुष होते हैं. उन अलग अलग पुरुषोंके मुखसे उस प्रस्तावके समर्थनकी दलीलें निकलती हैं इससे श्रोताओंको उस प्रस्तावपर अधिक विचार करनेका मौका मिलता है. कदाचित् उस वखत उसके अंत:करण में वह प्रस्ताव ठस भी जाता है, और वह अपने घर जानेपर यथाशक्ति कुछना कुछ अमलवारी भी करता है. इसलिये सभामें जो कुछ कहा जाता है और सुना जाता है वह बिलकुल कार्यकारी नहीं है ऐसा नहीं है. उसका जो www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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