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________________ (२१) कहने लगाकि मेरा प्राण बचाना चाहती है तो सतिाको मेरे साथ रममाण होनेकेलिये प्रयत्न कर. मंदोदरीने उत्तर दिया कि आप ऐसे बलाढ्य शक्तिवान् विद्याधर होकर एक क्षुल्लक मानव स्त्रीको समझानेकी इतनी कोशिस क्यों कर रहेहो ? उसकी शक्ति क्या है? उसको पकरकर यहां बुलालो और हात पकडकर बलात्कार करो. बस होगया. इसकेलिये उसकी इतनी खुशामद क्यों? इसपर रावणने उत्तर दिया कि, तूं कहती है सो सत्य है. सीताको पकडकर लाना और अपने हाथ से यहां बलात्कार करना इसमें मुझे कोई कठिन बात नहीं है. लेकिन मैंने पहले श्री अनंतवीर्य केवल के पास प्रतिज्ञा ली है कि, मैं कोई भी पराई स्त्रीपर उसकी सम्मतीबिना जबरदस्ती नहीं करूंगा. उस प्रतिक्षाका भंग मेरा प्राण जाय तो भी मैं नहिं करूंगा. प्रतिज्ञाभंग हो गया तो फिर इस दुनियामें क्या रहा ? इससे मैं सीताके ऊपर बलात्कार करना नहिं चाहता. मुझको सीता अपनी ही इच्छासे वश हुई तो ठीक, नहीं तो मैं ऐसा ही प्राण त्याग करूंगा. लेकिन प्रतिज्ञाभंग नहिं करूंगा. देखिए, प्रिय सज्जनवृंद, रावणने एक छोटीसी प्रतिज्ञा ग्रहण करनेसे सीता सतीका शील रक्षित हुवा यह कितना भारी काम हुवा ? ___ यमपाल मातंगकी कथा आपको याद होगी. उसका काम यह था कि राजा जिसका शिर उडानेका हुकूम दे उसका शिर उडादेना. एक समय एक मुनिके पास उसने प्रतिज्ञा लेली कि, मैं सिर्फ सुदि १५ के दिन किसीकाभी बध नहीं करूंगा. फिर कोई समय ऐसा आगया कि सुदि १५ के ही दिन अपने पुत्रका शिर उडानेका हुकूम राजाने दिया. शिर उडानेपर उस राजपुत्रके कपडे जवाहर सब इसको मिलने वाले थे. राजाके नौकरोंने यह सब फायदेका लालच उसको समझाकर राजपुत्रका शिर उडानेलिये चलनेको बहुत प्रयत्न किया. लेकिन उसने जबाब दिया कि, मेरा प्राण गया तो अच्छा लेकिन मैं आज किसीका भी शिर नहीं उडाऊंगा. मैं गुरुजीपास प्रतिज्ञा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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