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________________ (२) बनारस, भारा, कलकत्ता, रंगून, मांडले तक; और पश्चिममें बंबई, सूरत, आंमदाबाद, काठियावाड, कच्छतक. ऐसे इस भारतवर्षके चौतरफ फैली हुई जैनियोंकी वस्ती देखने में आतीहै जैसा जंबूद्वीपके मध्यभागमें विदेह क्षेत्र शोभता है वेसाही यह मालवाप्रांत सबके मध्यभागमें सुशोभित है. मालवाप्रांत धनधान्यादि ऐश्वर्योसे जैसा संपन्न है वैसा ही धर्म कार्योंमें दत्तचित्त ऐसे उदार पुरुषोंसे भी भरा हुवा है. तीस वर्ष पहले मैं इंदोर आया था ऊस समय भाई साहिब बेनीचंदजी, श्रीमान फत्तेचंद कुसलावाले नाथुरामजी, चुनीलालजी, हीरालालजी, चंपालालजी इत्यादि धर्मात्मा महाशयोंसें यह नगरी ही क्या परंतु संपूर्ण मालवाप्रांत प्रकाशमान हो रहाथा. जैसे लक्ष्मीवान और उदार चित्तवाले धर्मात्माओसें यह प्रांत चमक रहाथा, वैसे ही जैन सिद्धांतके ज्ञाता विद्वान शिरोमणि पंडित भागचंदजी, पंडित झरगदलालजी और न्याय दिवाकर पंडित पन्नालालजी इत्यादि बडे बडे दिग्गल शास्त्रविशारद पुरुषभी इस मालवाप्रांतमें दौरा करते मिथ्यात्व अंधकारको दूर करनेमें मानो सूर्य समान प्रकाशित थे. तबसे आजतक यह मालवाप्रांत धनाढ्य, उदार और विद्वान पुरुषोंसे दिनदिन उन्नत्तिपर बढताही देखनेमें आताहै. इसी कारण मैंने इसको जंबूद्वीपमेंके विदेह क्षेत्रकी उपमा दीहै. सजन महाशय, यद्यपि विदेहक्षेत्र भरत ऐरावत क्षेत्रोंकी अपेक्षासे बहुत कल्याणकारी है, तोभी वह क्षेत्र इन क्षेत्रोंके समान कर्मभूमि ही है. वहांपर भी शुभाशुभ आस्रव बंध होते रहते हैं; इसलिये संवर निर्जराके उपायोंद्वारा उन कर्मोको दूर करके जैसे मोक्ष प्राप्त करना पडताहै, वैसे ही यह मालवाप्रांत धनाढ्य, उदार और विद्वान धर्मात्माओंसे अन्य प्रांतोंकी अपेक्षा बहुत ही बढकर है, तोभी इसमें भी उन्नतीकी पूर्णता होचुकी ऐसा नहिं समझना चाहिये. यहांपर भी और प्रांतोंके समान कई त्रुटियां विद्यमान हैं. जिनको कि किन किन उपायोंसे दूर किया जाय इस अभिप्रायसे ही इस मालवाप्रांतिक सShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ही मह अपेक्षा मा नहि विद्यमान ही इस www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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