________________
( २ )
आठ या ६ हाथ ऊंची और १ हाथ ऊंची वेदी ( चबूतरा ) बनवाकर उसपर १ हाथ लंबे चौड़े गहरे तीन कटनी वाले चौकोण तीर्थंकर कुन्ड की रचना कराई जाती थी तथा विवाह सामग्री याने साकल्प ( हवन सामग्री ) घृत समिधा च्यादि का परिमाण मी बहुत रहता था । विधि कराने में तीन चार घन्टे से कम नहीं लगते थे । उसपर भी भाग्यवश विवाहित श्री पुरुषों संबंधी कोई दुर्घटना के होने पर अपयश उठाना पड़ता था । उस दुर्घटना का दोष जैन विवाह विधि पर ही मंडा जाता था। धीरे धीरे प्रचार होते होते आज जो स्थिति है वह सबके सामन है । उत्तर प्रदेश में तो ब्रह्मण पांडे लोगोंतक को यह विधि कण्ठ है और इसीका वे उपयोग करते हैं । जैन विवाह विधि क़रीब १५) रु. या २०) रु. के व्यय में संपन्न हो जाय और गरीब व्यक्ति को भी यह न खरे तथा घन्टे भर के मीतर ही इसका कार्य पूर्ण होजाय, ताकि ज्यादा समय तक बैठे रहने से कन्या के बेहोश हो जाने और लोगों की घबराहट एवं अरुचि की शिकायत न हो इन्हीं लोगों ने काफी सुधार करने का प्रयत्न किया है, जो वेदी - कुन्ड की रचना और तोरण फेरे आदि के विषय में इस पुस्तक में दी गई सम्मति से भी ज्ञात हो सकेगा । इसमें अन्य जाति एवं प्रांत की खास खास प्रथा का भी उल्लेख कर दिया गया है । अन्य फेरपाटा आदि प्रथायें हमने जानबूझ कर नहीं लिखी । हम ज्यादा प्रथाओं को महत्व भी नहीं देना चाहते । जितनी अंधपरंपरा
ख्यालों से हम
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com