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(७)
विवाह वेदी घर के यहां केवल मण्डप की रचना होती है । और कन्या के यहां मण्डप के सिवाय भांवर (फेरे) के लिए विवाह-वेदी की रचना भी होती हैं । मण्डप में अथवा अन्यत्र जहां फेरे कराये जाते हैं। उस स्थान पर मंडवा (गंदेवा ) ताना जाता है और कहीं २ मानस्तंभ व कलश (मिट्टी का) भी स्थापित किया जाता है । इस जगह वेदी की रचना की जाती है । वेदी बनाने के लिए कम से कम चार हाथ की लम्बी चौडी जमीन के पास पास चारों कोनों में कुम्हार के यहां से लाए हुए ७-७ बर्तन रखे जायें और उनके चारों ओर चार चार बांस तथा ऊपर भी कुल चार बांस लगाकर उन्हें नीचे लाल चोल से और ऊपर लाल पगडी से लपेटकर मून्ज की रस्सी और लच्छेसे बाँध देना चाहिए । बीच में ऊचा चंदेवा बाँधना चाहिए जिसके नीचे वर कन्या खडे रह सकें। इस वेदी के बिलकुल वीच में एक हाथ लम्बा चौडा स्थंडिल, जो विवाह सामग्री के भीतर बताया गया है, बनाया जाय । इसीपर हवन होगा। इस स्थंडिल के पश्चिम या दक्षिण ओर आघा हाथ छोड़कर एक हाथ की जगह में तीन करनी वाली चौकी या उस हिसाब से एक हाथ लम्बाई से ईटें रख देना चाहिए ।
फेरे या पाणिग्रहण संस्कार विधि
कन्या के यहां वर बरात लेकर जाता है यह बरात बाहर गांव की हो तो सारी विवाह संबन्धी कार्यवाही दो दिन के भीतर ही हो जाना चाहिये। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुये हमारी सम्मति में एक दिन में तोरन और फेरे होकर दूसरे दिन बरात विदा कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com