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(२) मर्यादा पूर्वक ऐन्द्रियिक सुख की इच्छा से किया जाता है क्योंकि पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अल्प शक्ति रखने वाले स्त्री रुषों से नहीं हो सकता इसलिये आचार्यों ने ब्रह्मचर्याणुव्रत में परस्त्री त्याग और स्वस्त्री संतोष का उपदेश दिया है । यह विवाह देव, गुरु, शास्त्र की साक्षी से समाज के समक्ष होता है, जो जीवन पर्यन्त रहता है। वर और कन्या में कन्या से साधारण तौर पर वर की उम्र कम से कम दो वर्ष और अधिक से अधिक दस वर्ष बड़ी होना चाहिये वर्तमान में कन्या की विवाह योग्य वय.१४ वर्ण से और वर की १६ वर्ष से कम नहीं होना चाहिये ।
विवाह में आजकल की परिस्थिति को देखते हुए धार्मिक किया और आवश्यक सामाजिक नियमों के सिवाय अन्य रीति रिवाजों में खर्च और बचत करने में ही हित है।
विवाह की सामग्री श्रीफ्रन, विनायक यन्त्र, शास्त्र, सिंहासन, चमर, छत्र,
अष्टमगल द्रव्य (ठौणा, चम, छत्र, दर्पण, ध्वजा, भारी, कलश, पंखा) जलभरा सफेदलोटा,
लालचोल एक हाथ, अन्तर्पट के लिए दुपट्टा, फूलमाला
तीन कटनीवाली बेदी, पक्की नंबरीईटें, सूर्ख
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