________________
ऐसा सुवर्ण अवसर हाथों से न जाने दीजिये ! मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास
और श्रीमान् लौंकाशाह ये ग्रन्थ क्या है एक प्राचीन ऐतिहासिक एवं स्व-परमत्त के शास्त्रों के सैकड़ों प्रमाणों का एक बस खजाना ही खोल दिया है तथा खोद काम करवाने से भूगर्भ से मिली हुई हजारों वर्ष पूर्व का प्राचीन मूर्तियाँ जो तीर्थङ्करों की तथा पूर्वाचार्यों (हाथ में मुँहपत्ती वाले ) के बहुत चित्रों से तो मानो एक अजायबघर ही तैयार कर दिया है। मर्तिपूजा मुँहपत्ती और लौंकाशाह के विषय की चर्चा तथा स्वामी अमोलखऋषिजी कृत ३२ सूत्रों के • हिन्दी अनुवाद में उड़ाये हुए मूल सूत्रों के पाठ और स्वामी .. घासीलालजी की बनाई हुई उपासक दशांग मूत्र की टीका में
बनाये हुए नये पाठों के लिए १०० प्रन्यों और ४५ या ३२ सूत्रों को पास में रखने की जरूरत नहीं है, यह एक ही पुस्तक सबका काम दे सकती है। इस पुस्तक को इस ढंग से लिखी है कि साधारण पड़ा हुआ मनुष्य भी उपरोक्त बातों का समाधान आसानी से कर सकता है। पृष्ट सं० १०००, चित्र सं० ५२ पके कपड़े की दो जिन्हें होने पर भी प्रचारार्थ मूल्य मात्र रु. ५)। ओर्डर शीघ भेज कर एक प्रति कजे कर लीजिये वरना यह बाद में पचीस रुपयों में भी मिलना मुश्किल है।
पता-शाह नवलमलजी गणेशमलजी
कटरा पाजार, जोधपुर ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com