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समझ कर अव्रती ( साधु के सिवा अन्य लोगों ) को दान देने से बचने का उपाय करे। जो साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देने का शुद्ध मन से त्याग करता है, उसका पाप टल जाता है और भगवान महावीर उसकी बुद्धि की प्रशंसा करते हैं ।
इस तरह साधु के सिवाय और सभी जीव को दान देना, पाप ठहरा कर तेरह - पन्थी लोग, साधु के सिवाय और को दान देने का त्याग कराते हैं। तेरह-पन्थियों की इस मान्यता से -
( १ ) भूखे को भोजन; प्यासे को पानी; नंगे को वस्र; वर्षा, शीत व ताप से कष्ट पाते हुए को स्थान देना पाप है ।
(२) कबूतरों को दाना डालना तथा गायों को घास डावना आदि भी पाप है ।
( ३ ) और तो ठीक, परन्तु अपने माता-पिता को भोजन देना और उनकी सेवा करना भी पाप है ।
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को दिया गया हो, भिखारी को
इसी तरह देना मात्र पाप हो जाता है, फिर वह चाहे ब्राह्मण' दिया गया हो, अपंग अपाहिज को दिया गया हो, गौशाला
को दिया गया हो, कोड़ी कबूतर
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* यह बताया जा चुका है कि तेरह - पन्थी साधु, केवल अपने को ही साधु मानते हैं, और किसी को भी साधु नहीं मानते हैं । वे, प्रती का अर्थ साधु ही करते हैं; वतधारी श्रावक की गणना भी अवती और कुपात्र में करते हैं।
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