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________________ ( ६६ ) वली मिथ्यात्वी ने भली करणी रे लेखे सुव्रती कह्यो छे । ते पाठ लिखिये छे । ऐसा कहकर उत्तराध्ययन सूत्र के ७ वें अध्ययन की २० वीं गाथा उद्धृत करते हुए लिखते हैं - अथ इहाँ इम कह्यो । जे पुरुष गृहस्थ पणे प्रकृति भद्र परिणाम, क्षमादि गुण सहित एहवा गुणा ने सुव्रती कहाा । परं १२ व्रतधारी नथी । ते जाव मनुष्य मरी मनुष्य में उपजे । ए तो मिथ्यात्वी अनेक भला गुण सहित ने सुव्रती को । ते करणी भली आज्ञा मां ही छे। अने जे क्षमादि गुण आज्ञा में नहीं हुवे तो सुव्रती क्यूँ कह्यो । ते क्षमादिक गुणां री करणी अशुद्ध होवे तो कुब्रती कहता । ए तो साम्प्रत भली करणी आश्रयी मिथ्यात्वी ने सुव्रती को छे। अने जो सम्यक् दृष्टि हुए तो मरी ने मनुष्य हुए नहीं । अने इहाँ कह्यो ते मनुष्य मरी मनुष्य में उपजे ते न्याये प्रथम गुण ठाणे छे । तेह ने सुव्रती कह्यो । ते निर्जरा री शुद्ध करणी आश्रयी को छे । इस कथन द्वारा वे कहते हैं कि क्षमादि गुणों के कारण से मिध्यास्वी सुव्रती है, और अपने इस कथन की पुष्टि में उत्तरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034858
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherBalchand Shrishrimal
Publication Year1942
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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