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________________ ( ५८ ) 'सु' और 'कु' (पात्रों के) विशेषण हैं। विशेषणों का उपयोग विशेष समय पर ही किया जा सकता है, सदा के लिए नहीं, लेकिन तेरह पन्थियों ने मूल शब्द 'पात्र' और 'अपात्र' का तो कहीं उपयोग ही नहीं किया है । पात्र का अर्थ है बर्तन -भाजन । वस्तु रखने के लिए जो उपयुक्त होता है, वह उस वस्तु के लिए पात्र है, और जो उपयुक्त नहीं है, वह अपात्र है । परन्तु जो एक कार्य के लिए पात्र है, वही दूसरे कार्य के लिए अपात्र भी हो जाता है, और जो एक कार्य के लिए अपात्र है, वह दूसरे कार्य के लिए पात्र भी हो जाता है । उदाहरण के लिए कोई लड़का उद्दण्ड, अविनीत चोर और विद्याध्ययन में चित्त न लगाने वाला है, तो वह लड़का विद्या पढ़ाने के लिए तो अपात्र है, परन्तु लड़ाई-झगड़े और बदमाशी आदि के लिए पात्र हो जाता है । इसी प्रकार जो व्यक्ति पढ़ा-लिखा तो है, साहसी भी है, परन्तु कद में ५ फोट ६ इञ्च से कम है और छाती ३० इव है, तो वह व्यक्ति फौज में भर्ती होने के लिए तो अपात्र है, लेकिन कुर्की के लिए अपात्र नहीं है, किन्तु पात्र है । इन उदाहरणों को और आगे बढ़ा लीजिये । । 'सु' और 'कु' विशेषण पात्र के लिए हो लग सकते हैं। जो जिस कार्य का पात्र ही नहीं है, उसके लिए 'कु' और 'सु' विशेषण भी नहीं उगते । जो जिस वस्तु का पात्र है, उसमें रखी गई वस्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034858
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherBalchand Shrishrimal
Publication Year1942
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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