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________________ ( ३३ ) और पंचेन्द्रिय जीव समान नहीं हैं, किन्तु एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा पंचेन्द्रिय जीवों का महत्व बहुत अधिक है । पंचेन्द्रिय जीव की रक्षा के लिए एवं पंचेन्द्रिय जीव के कल्याण के लिए एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा नगण्य है । एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा होते हुए भी पंचेन्द्रिय जीव ( मनुष्य ) का हित साधु को करना, जैन शास्त्र सम्मत है । तेरह-पन्थी लोग दया दान के विरोधी होने से ही एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव को समान बताकर एकेन्द्रिय की हिंसा के नाम पर पंचेन्द्रिय की रक्षा को पाप बताते हैं । वे लोगों को धोखे में डालते हैं, लोगों में भ्रम फैलाते हैं और जैन धर्म के नाम पर लोगों को उल्टे मार्ग पर ले जाते हैं । यदि ऐसा नहीं है, तो फिर तेरह - पन्थी साधु स्थावर जीवों की रक्षा के लिए (१) प्रतिलेखन करना क्यों नहीं त्यागते ? (२) रजोहरण का उपयोग करना क्यों नहीं छोड़ते ? (३) प्रामानुग्राम विहार करना क्यों नहीं त्यागते ? (४) आहार -पानी त्याग कर संथारा क्यों नहीं कर लेते ? (५) नदी के पार जाना क्यों नहीं छोड़ते ? (६) पंचेन्द्रिय जीव के मर जाने पर ज्यादा प्रायश्चित क्यों लेते हैं ? (७) माँस-भक्षी की अपेक्षा अन्न वा वनस्पति-भोजी को बड़ा पापी क्यों नहीं मानते ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034858
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherBalchand Shrishrimal
Publication Year1942
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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