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( २० ) हित के लिए आपने कितने एकेन्द्रिय और त्रस जीवों की हिंसा की ? चाहे आपको विहार, धर्म-प्रचार आदि के लिए गुरु या भगवान की लाज्ञा भी हो, परन्तु आमा होने के कारण वायुकायिक प्रादि जीवों की हिंसा को अहिंसा तो नहीं कही जा सकती। यदि ऐसी हिंसा अहिंसा हो, तो फिर इरियावही क्रिया ही क्यों लगे ? है तो वह हिंसा ही, जो मनुष्यों के हित के लिए चाहे की गई हो। इस प्रकार आपने या भगवान ने एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों में भिन्नता मानी या नहीं ? एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय अथवा स्थावर और त्रस समान तो नहीं रहे न ? यदि समान ही हों तो थोड़े से मनुष्यों के हित के लिए वायुकायादि के असंख्य जीवों की हिंसा क्यों की जावे ?
चौथी दलील देखिये ! तेरह-पन्थी साधु बाहार पानी के लिए इधर उधर घूमते हैं, तथा आहार पानी करते हैं। इस कारण दिशा जंगल भी जाना पड़ता है। इस आवागमन में तथा श्वासोछास लेने में असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा होती है, या नहीं ? यह हिंसा वे क्यों करते हैं ? यदि साधु होते ही वे संघारा कर लेते तो यह हिंसा तो बच जातो या नहीं ? इतने जीवों की हिंसा करके वे अपने एक मानव शरीर की रक्षा करते हैं या और कुछ करते हैं ? यदि एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव समान है, तो फिर तो एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा से बचने के लिए संयम
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