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________________ ( १५ ) यदि तेरह-पन्थी लोग यह कहें, कि प्रतिलेखन करना हमारा धार्मिक कृत्य है, और इस कृत्य को नित्य दोनों समय करने के लिए भगवान की आज्ञा है, इसलिए हमको करना पड़ता है तथा इसमें वायुकाय के जीवों की जो हिंसा होती है, वह क्षम्य अथवा नगण्य है, तो हम उनसे पूछते हैं कि भगवान की आज्ञा होने पर भी, अथवा प्रतिलेखन के कार्य की वायुकायिक हिंसा नगण्य एवं क्षम्य होने पर भी वायुकायिक जीवों की हिंसा तो हुई या नहीं ? और यह हिंसा त्रसकायिक जीवों को बचाने के लिए ही हुई या और किसी लिए ? तथा इस प्रकार आपने अथवा भगवान ने वायुकाय के एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा त्रस काय के जीवों को बड़े माने या नहीं ? तेरह-पन्थी साधु कहें कि प्रतिलेखन करने का उद्देश्य हमारा त्रसकायिक जीवों को बचाना नहीं है, किन्तु हमको अपने वस्त्र, पात्र या शरीर द्वारा होने वाली हिंसा से बचना है। बहुत ठीक, त्रस जीवों की हिंसा से बचने के लिए ही सही, वायुकायिक जीवों की हिंसा तो हुई या नहीं ? असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा करने पर ही आप थोड़े से त्रस जीवों की हिंसा से अपने को बचा सके न ? फिर एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय बराबर कैसे रहे ? ___ यदि आपके नेश्राय में वन-पात्र हैं, इसलिए उनके द्वारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034858
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherBalchand Shrishrimal
Publication Year1942
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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