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________________ ( १६४ ) सहन का चित्र खींचते हैं कि वह इनकी असली हालत को जाने पिना ही इनकी तारीफ करने लगता है। अपने त्याग की हरेक बात को इतनी बढ़ा कर आने वाले को वे कहते हैं कि उससे भोले व्यक्ति प्रवञ्चना में फंस जाते हैं। ये साधु अपने श्रावकों के सामाजिक और लौकिक कार्यों से अपने को बिलकुल मुक्त बतलाते हैं। पर यह विलकुल झूठ है क्योंकि दुनिया का कोई काम ऐसा बाकी नहीं रहा है, जिसका इन्होंने पाप और धर्म में बँटवारा न कर दिया हो। पाप और धर्म की सूचियों में सभी कार्यों का वे वर्गीकरण कर देते हैं और रात दिन यह उपदेश दिया करते हैं कि धर्म करने का ओर पाप नहीं करने का है, इनके धर्म का मानवता के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, इसलिए मानव जाति की उन्नति के जितने कार्य हैं, वे सब पाप को सूची में रखे गये हैं। हमारे साधुओं ने सिखाया है कि जब तक उनकी तरह किसी ने संसार का त्याग कर पंच महाव्रत नहीं धारण किये है, तब तक उसकी सेवा करने या उसको दान देने में धर्म नहीं है, बल्कि कर्म-बन्धन स्वरूप पाप है। समाज के बालक बालिकाओं के लिए शिक्षालय या स्वास्थ्यालय खोलना भी हमारे साधुणों के उपदेशानुसार धर्म कार्यों की सूची में नहीं पाता। इस तरह यह धर्म, समाज के लिए कुछ भी नहीं करता, बल्कि किये जाते को रोकता है, और फिर भी जैसा आपने बहुत ठीक ठीक लिखा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034858
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherBalchand Shrishrimal
Publication Year1942
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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