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( १३३ ) बचाने के लिए भी साधु उपदेश देते हैं। और यदि बकरे के बचने से धर्म माना जावेगा, तो धन बचने से भी धर्म मानना होगा।' इसके सिवाय वे एक और उदाहरण देते हैं। ___'एक व्यभिचारी पुरुष एक स्त्री के पास दुराचार करने के लिए जा रहा था। साधु ने उसको दुराचार का दुष्परिणाम बताया, जिससे वह पुरुष समझ गया, और उसने परदारनामन का त्याग कर लिया। त्याग लेने के पश्चात् वह उस व्यभिचारिणी स्त्री के पास गया, और उससे बोला, कि मैंने तो महात्मा के पास से पर-स्त्री-सेवन का त्याग कर लिया है, इसलिए मैं तुम्हारे साथ अब सम्भोग नहीं कर सकता। यह सुनकर उस व्यभिचारिणी स्त्री ने कहा, कि तुमने मुझे वचन दिया था, इसलिए या तो मेरे साथ सम्भोग करो, नहीं तो मैं कुएँ में गिर कर मर जाऊँगी। व्यभिचारिणी स्त्री के बहुत कहने पर भी जब वह पुरुष नहीं माना, तब वह स्त्री कुएं में गिर कर मर गई।' ___'अब यदि मारने वाले को उपदेश देने से बकरा बच गया और बकरे के बचने का धर्म साधु को हुआ, तो व्यभिचारी पुरुष को उपदेश देने से व्यभिचारिणी स्त्री कुएँ में गिर कर मर गई, उसका पाप भी उपदेश देने वाले को लगेगा। परन्तु व्यभिचार का त्याग कराने से जो व्यभिचारिणी स्त्री मर गई, उसका पाप साधु को नहीं लगता, उसी प्रकार बकरा मारने वाले को हिंसा
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