SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२१ ) या दुःखी जीव को दुःख मुक्त करना पाप है, तो फिर साधु और तीर्थङ्कर का दर्शन करना भी पाप ठहरेगा । और यदि प्रारम्भिक हिंसा के होने पर भी साधु के लिए प्रतिलेखन करना, साधु के लिए रजोहरण का उपयोग करना, और साधु तथा तीर्थङ्कर का दर्शन करना पाप नहीं है, तो फिर प्रारम्भिक हिंसा के कारण किसी मरते हुए जीव को बचाना अथवा किसी कष्ट पाते हुए जीव को कष्ट मुक्त करना पाप क्यों हो जावेगा ? इन सब बातों पर विचार करने से स्पष्ट है कि किसी मरत हुए जीव को बचाना या किसी कष्ट पाते हुए जीव को कष्ट मुक्त करना पाप नहीं है । इन कामों को पाप बताने के लिए तेरह - पन्थी लोगों की समस्त दलीलें केवल उन लोगों को भ्रम में डालकर अपने मत में लाने के लिए हैं, जो लोग शास्त्र को पूरी तरह जानते नहीं हैं, अथवा तेरह पन्थियों की दलीलों का उत्तर देने की जिनमें क्षमता नहीं है । तेरह - पन्थी साधु कहते हैं, कि हम मारने वाले को पाप से बचाने के लिए उपदेश देते हैं, मरते हुए जीव को बचाने के लिए उपदेश नहीं देते। साधु का यही कर्तव्य है, कि वह मारने वाले को पाप से बचाने के लिए उपदेश दे, परन्तु मरने वाले की रक्षा के लिए उपदेश न दे। क्योंकि, मरने वाले की रक्षा करना पाप है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034858
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherBalchand Shrishrimal
Publication Year1942
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy