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( ८ ) वे डीडवाना छोड़ भिन्नमाल में जा बसे थे। इस विषय का पट्टावलि में भी उल्लेख मिलता है। ____ "५० तत्पट्टे संवत् ११८८ वर्षे देवगुप्तसूरिर्बभूव । भिन्नमाल नगरे शाह भइसाक्षेन पद महोत्सवे सप्तलक्ष धन व्ययो कृतः x x इत्यादि"
इस भैंसाशाह से चोरड़िया जाति में गदइया शाखा की उत्पत्ति हुई थी। ____ जब सं० ११०८ में चोरडिया जाति से गदइया शाखा का प्रादुर्भाव हो गया था तब जिनदत्तसरि का जन्म ही सं० १९३२ में हुआ था, अब स्वयं सोचें कि चोरडिया या गदइया जाति के स्थापक जिनदत्तसूरि किस प्रकार से बन सकते हैं कि जिनका जन्म भी नहीं हुआ था।
४-चौथा भैंसाशाह नागोर में हुआ। आपके तीन बान्धव और भी थे, जिसमें बालाशाह ने नागौर में मन्दिर बनाया जो बड़ा मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। टीकुशाह ने टीकुनाड़ा बनाया, घीसुशाह ने गायों के लिये भूमि छोड़ाई और भैंसाशाह ने श्री शत्रुक्षय का वृहद् संघ निकाला इत्यादि ।
इनके अलावा भी इस आदित्यनाग गौत्र रूपी समुद्र में मनगिनती के नर-रत्न हुए हैं जोकि अपने गोत्र को २३९३ वर्ष जितना प्राचीन साबित करते हैं।
खरतरों ने यह कोई नया बबण्डर नहीं उठाया है, पर पहिले भी चोरड़िया जाति के लिये इतर लोगों ने खींचातानी की थी, जिसका निर्णय जोधपुर के न्यायाऽवतार नरेशों की अदालत में हुआ था,
और उन्होंने मय साबूती के निर्णय कर फैसला ही क्यों पर अपनी मुहर का फरमान भी कर दिया था कि चोरडिया जाति उपकेश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com