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श्री गुरुमहिमा.
छन्द नाराच. अलक्षदेशमां गुरुजी लक्ष राखता, अपक्षपातमां सदैव पक्ष नाखता; अदक्षलोक अर्थ आप दक्षता हती, अमारी आ स्वीकारजो सदा नमस्कृति. अधर्य लोकने गुरुजी धैर्य आपता, अशौर्यलोकने गुरुजी शौर्य आपता; वडीलवर्गमां तमारी नम्रता हती, स्वीकारजो अमारी आ सदा नमस्कृति. तमारी ज्ञानीलोकमाही ज्ञानता हती, तमारी मानि छोकमांही मान्यता हती; जगत् हितार्थ कार्यथी तनू भरी हती, स्वीकारजो गुरु अमारी आ नमस्कृति. मुभक्तलोकमां तमारी भक्तता हती, विरक्तभावथी रुडी विरक्तता हती; अनंत केटिवार छे प्रणाम त्वत्पति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ४ तमो विषे फकीरीनी अमीरी दर्शती, करुणभावनी तथा मुष्टि वर्षती; सदोज्ज्वलां हतां धृति कृति अने मति: अमारी आ स्वीकारजो सदा नमस्कृति. ५
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