SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ भजनीलोकोतोभजनीकजाणेरे,योग वाला तो योगी पीछाणेरे; निर्मल लोक तो निर्मानी माने. बुद्धि० ॥६॥ जेनी राग रहित रुडी दृष्टिर, शास्त्र मांही विशारद सृष्टिरे; जेने वैराग्य वारिनी वृष्टि. बुद्धि० ॥७॥ देह त्यागी गया बीजा देशेरे, अमने ज्ञान अमृत कोण देशेर; हित शिक्षाओ गुरु ! कोण कहेशे. बुद्धिः ॥८॥ मोहराजाने मारी नाख्योरे, राग एक आत्मामांही राख्योरे; गुरुभाव अजित शिष्ये भाख्यो. बुद्धि० ॥९॥ श्री सद्गुरुने प्रेमांजलि. हरिगीत-गझल सोहिनी. गुजरातमां जन्मी अने, गुजरातने पावन करी, भयकापती भगवंतनी, अति दीव्यभक्ति आदरी; सुज्ञान दीव्य प्रदेशनु, निर्मल तमारामां हतुं, ने आपना पथ लइ जवानु, ध्यान पण सुन्दर हतुं. ॥१॥ जे जे तम्हारी पासमां, भावे भर्या जन आवता, ते ते जनोने योग्य विधि, शुभ ज्ञान मुखकर आपता; मूर्ति मनोहर आपनी, अम नयन गोचर आवती, गुरुदेवकेरा भावथी, नयनो विषे जल लावती. ॥२॥ जगमांही जन्म्यो एज, जेणे विश्वनुं कंइ हित कर्यु, उंची कदावर मूर्ति ने, नयनो विमल प्रेमे भों; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034839
Book TitleGurupad Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShamaldas Tuljaram Shah
Publication Year1926
Total Pages122
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy