________________
४६
सोsहं शब्द सुणाव्या म्हारा कानमां, जडचेतननी समजावी शुभशानजो; रुपैया आप्याथी वस्तु ना - मले, ते प्रभु केरुं गुरु दीधुं दानजो. ज्ञानभानु प्रगटाव्यो दील आकाशमां, निर्मल भावे कर्यो तिमिरनो नाशजो; समीप वस्तुने कीधी दूर प्रदेशमां, दूर वस्तुने दर्शावी छे पासजो. सद्गुरुना वचने म्हें छोडी जातडी, सद्गुरु वचने त्याग करी म्हें नातजो: गुरुवचनामृत पीनेत्याग्या तातने, गुरुवचनोथी मानी मात अमातजो. भ्रमणा मम भागीने लगनी लागी छे, गुरु वचनोमां तन मन धन कुरबानजो; आत्मानी परमातमशुं थइ प्रीतडी.
सद्गुरु. ॥२॥
सद्गुरु, ||३||
सद्गुरु. ॥४॥
अलख निरंजन प्रभुनुं लाग्यं ध्यानजो. सद्गुरु ॥५॥ असंख्य प्रदेशी चिद्घन प्रेमे पामीयो, वर्षी रह्या कां शांतितणा वरसादजो; स्मृति आवी छे विस्मृतिकेरा नाथनी, अयाद देवनी गुरुए दीधी यादजो. शा शा गुण गणावुं श्री गुरुदेवना, अनंत दिवस गणतां पण नावे पारजो;
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
सद्गुरु ||६||
www.umaragyanbhandar.com