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सम्यकदृष्टि गुरुविना, कोण बतावणहार; सम्यक् दृष्टि विना तथा, कोण बचावणहार; ॥३॥ जैनधर्मना सुख भर्या, अति उत्तम मुनिराज परोपकारी कार्यथी, सिध्यां सघलां काज; ॥४॥ एवा जन थोडा थशे, पावनपरम सुजाण; पुणे कृतार्थं बनी रह्या, मोक्षनु राख्युं मानः ॥५॥ __ ढाल. नाथ कैसे गनको बंध छुडायो-५ राग श्रावकव्रत भवजल तरवानो वारो, नावेगुरु विण पार किनारो, श्रावक० ए टेक. देशथी विरति पंचम गुणस्थानक, साची शान्तिनो उतारो; दीलडाना दोष बधा दूर करवा, समकित सद्गुण प्यारो,
श्रावक० ॥१॥ कालने काप्या कंकासने काप्या, उत्तम आव्या विचारो; का नेता रावला गया,
जाप हला);
श्रावक० ॥२॥ प्रेम पावक केरी बलवंती ज्वाला, ध्याननो धूप छे सारो स्याद्वाद दृष्टि घाणमार्गे थई, अध्यात्म गंध प्रसार्यों;
श्रावक० ॥३॥ जगवासना केरो रोग हठाव्यो, मोह खपान्यो छे खारो; सत्कीर्ति सहु जगमांही प्रसरी, उत्तम सहुना उच्चारो;
श्रावक० ॥४॥ आत्म परात्मनुं ज्ञान प्रगट करी, ममतानो मार्यों ठठारो;
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