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परिशिष्ट [] दादा श्रीजिनकुशलसरि स्तुम्माष्टोत्तरशतस्थान
नामगर्भित-स्तवनबंदीमइ सद्गुरु घरदाई, भीजिमकुशलमूरि सिरदार । महियल माहे मोटइदावइ, दीपद जिम पूरव दिनकार ॥१॥ मूल धुंभ देराउर मरियल, गुणगिरुओ श्रीगाम गडाल परचा पूरई परतिख पगि पगि, पाउपगारी परमदयाल २ महिमावंत अधिक मुलताणइ, उच्च अनोपम छह अधिकार सिदपुरइ समरूं समवायउ, नयर किरहोरइ नवसरहार जेसलमेर सकल जोधाणइ, नागोरइं प्रणमा नवद मेदनीतटइ देखी मन उनसइ, देवलवाडा आणि दिणंद उग्रसेनपुर पाटण अलवर, अमरसग्इं अउरंगाबाद नाडुलाइ वर्द्धनपुर नवहर, उद्योतनपुर अहम्मदाबाद सांगानेर विहार सुशोभित, मालपुरइ मनमोहन रूप । जयतारणि अरियण सहु जीपा, भाव धरीनइं बंदे भूप ६ किसनगढइ कल्पतरु कहीया, राजगढइ चंपारतलाम ममियाणह सोझित अतिसोहइ, साचोरह सारे मा काम सोबनगिरि मंडण सीरोही, नूतनपुर नित घढतउ नूर। पूजउ शत्रुजइ पदपंकन, सरति वंदु ऊगत सूर ।।८।। गिरनारइ तुझ गुण सहु गावर, जावइ दुख दोहग जंजाल । दीव नगर देख्या तुझ दरसण, मांगि फलइ मनोरथ माल
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