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९८ जम्ह हाद]हुंती मोटी आस,इणि परि मेल्हइ ? कांह निरास हुयह पुत्र कुलवंता जेउ, मातपिता मनि चालइ तेउ ॥१७॥ थोड़ामांहि कह्यु मइ घणु, पूछि बच्छ ! हिव मन आपणुं। जयतसिरी तव बोली रही, कुंयरि बात तब निश्चल कही १८ अहह !! दिखाड़िय जई तई लोम, तिणि मुझ चित्त न
. आवड खोम। पड़ा लोह जिणि सुत्तियवेह, मा किमि पाडइ ? पत्थर रेह १९ लोकमाहि जे कहीयह भोग, अंतरंग ते जाण्या रोग। नवनव परि जे झगडंत, मवि भवि आपइ दुक्ख दुरंत॥२०॥ किहां कवणु हउं कुण तू मात !, कुणु परियणु बंधव कुण तात हियह विचारि जोवउ मान !, मायामय सहु देख उ तात ॥२१॥ कूड़ कपट नट विट संबंध, द्रोह वंच मद मूर्छा बन्ध । भवि भमता मइ कीधा सही, दीक्षा विणु तसु औषध नहीं जग आवह जग जावइ तोइ, आवत जान न पूछइ कोइ । आहर जाहर इम्हइ करई, पुण्य विणु ओडालउ किरह।२३। मई मन कीध दृढ आपणुं, रणिचडिया केहउ कापणुं । तोरइ वचनि करि गृह त्याग, काराविसुं सुकत संभाग।२४ माइ मनाविय तिणि करि बुद्धि, निश्चय एकमना छह सिद्धि । हिव कुंयर उतावल थई, तउ सामहणी ततखिणि थई ॥२५॥
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