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रूपे रंभा सारिखीरे, मीठा बोली नार । तो किम देखे एहवीरे, भर जोबन व्रतधाररे-ब्रह्म०॥६॥ देखत अबला इंद्रिकोरे, वस होवे मन प्रेम । राजीमती देखीकरीरे, तुरत डिग्यो रहनेमरे-ब्रह्म०॥७॥ आतम लक्ष्मी कारणेरे, चेते चतुर सुजान । नारी खारी परिहरेरे, वल्लभ हर्ष अमानरे-ब्रह्म० ॥८॥
(काव्य-मंत्र पूर्ववत्) पूजा छट्ठी।
दोहरा. व्रत षट पालक साधुजी, षट काया रखवाल । भेद अठारां त्यागते, अब्रह्म दीन दयाल ॥१॥ औदारिक वैक्रिय कहा, मन वच काय प्रकार । कृत कारित अनुमोदना, अब्रह्म भेद अठार ॥२॥ रागी दुखिया नित्य है, नित्य सुखी नीराग । वीतराग सम जानिये, ब्रह्मचारी नीराग ॥३॥ उत्तम गुण ब्रह्मचर्यकी, रक्षा कारण खास । थानक मुनि सेवे नहीं, कामोद्दीपक पास ॥४॥ उपकारी अरिहंतकी, पूजाका विस्तार । रायपसेणी सूत्रमें, शिव सुख फल दातार ॥ ५॥
ठुमरी-पंजाबी ठेका । रागिणी सरपरदा ।
(गोपाल मेरी करुणा क्यों नहीं आवे-यह चाल) जिनंदा मोरा मुखसे यूं फरमावे ॥ अं०॥ मुनि कुट्यंतर वसना त्यागेरे, पंचमी वाड कहावे ॥१॥ १ एकही दीवार-भीत-या पडदे के अंतरे।
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