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________________ धन धन जिनवर देवको, धन गौतम गणधार । दीनो रक्षण ब्रह्मको, जगजीवन हितकार ॥ ४॥ पूजन ब्रह्मचारी प्रभु, ब्रह्मचर्यके हेत । गुणि पूजन गुण पूजना, होवे निश्चय लेत ॥५॥ कल्याण-(नाचत सुर इंद-यह चाल) पूजत सुर इंद विंद मंगल ब्रह्मचारी, पूजत सुर इंद विंद अं०॥ ब्रह्मचर्य शुद्ध जेह, परम पूंत तास देह । देवसेव करत नेह, जय जय ब्रह्मचारी-पूजत ॥१॥ ब्रह्मचर्य सेत हेत, खेत न नार नयन देत । काम राग कर संकेत, परिहर नर नारी-पूजत ॥ २॥ लिखित चित्रकार नार, नगन या शृंगार सार । . करत त्याग नजर धार, ऋषि मुनि अनगारी-पूजत ॥३॥ नारी रूप रुप्पी राय, नारी वेद आप पाय । भाव लाख भव भमाय, त्याग तुरीय वारी-पूजत ॥ ४॥ आतम लक्ष्मी नाथ माथ, नमत करत सेव हाथ । वल्लभ हर्ष धरत साथ, पग पर ब्रह्मचारी-पूजत ॥५॥ दोहरा। चौथी वाड कही प्रभ, नयन विकासी रूप रमणीको देखे नहीं, मुनि गुण आतम भूप ॥१॥ १ वृंद-समूह । २ पवित्र । ३ "देवदाणवगंधवा, जक्खरक्खसकिचरा । संभवारिं नमसंति, दुरं जं करंति ते ॥१६॥" [उत्तराध्ययन १] " देवनरिंदनमंसियपूर्य" [प्रभव्याकरण] ४ वेत-उज्वल-निर्मल । ५शारीर । १ नेत्र । ७ चौथी। ८ मखक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034794
Book TitleCharitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherBhogilal Tarachand Zaveri
Publication Year1925
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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