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देह उदारिक कारमी, क्षणमें भंगुर होय । सप्त धातु रोगाकुली, सार नहीं कुछ जोय ॥२॥ चक्री चौथा जानिये, देखन सुरवर आय । वोभी क्षणमें क्षतहुओ, रूप न नित्य कहाय ॥ ३ ॥ नारीकथा विकथा कही, जिनवर तीजे अंग । सप्तम अंगे सूचना, दंड अनर्थ प्रसंग ॥४॥ धन्य जिनेश्वर देवको, वीतराग भगवंत। उपकारी विन कारणे, जग उपदेश करंत ॥५॥
बरवा-कहरवा।
(धन धन वो जगमें नरनार. यह चाल) धनधन वीर जिनंद भगवान भविभवपार लगानेवाले ॥अं०॥ पंचम देवाधिदेव, करे सुर सुरपति जस सेव । फलं पुण्य अपूरव लेव, परमपद अंतिम पानेवाले॥धन०१॥ भाखे हित भवि नरनार, व्रतमें ब्रह्म जिम शंशी तोर ।
आदरसे मनमें धार, करो सेवन शिव जानेवाले॥धन०२॥ नर नार विषयकी वात, करे आतम व्रतकी घात । जिम वात तरुवर पात, तजो हृदि ज्ञान धरानेवाले ॥धन० ३॥ .जिम नींबु खटाई नाम, मुख छूटे जल अविराम । चित विणसे छोरोकाम,वचन जिनवरके गानेवालेधन०४॥
१ दुखदाई नाश होनेवाली । २ क्षणिक । ३ देखा । ४ नाश । ५ तीसरा अंग ठाणांगसूत्र । ६ सातमा अंग उपासक दशांगं नामा सूत्र । ७ द्रव्यदेव-कालकरके देवता होनेवाला, भावदेव-जो देवता हुभा हुआ है, नरदेव-चक्रवर्तिराजा, धर्मदेव-साधु, पांचमे देवाधिदेवं तीर्थंकर
[भगवती श० १२ उ०९।] ८ चंद्र । ९ तारे। १० पवन । ११ पत्र । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com