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कवाली।
करो टुक महर अय स्वामी, अजब तेरा दीदारा है। नही सानी तेरा कोई, लिया जग ढूंढ सारा है। अंचली तूंही जो है वही मै हूं, नहीं है भेद तुझ मुझमें। अगर है भेद तो दिलका, नहीं कुछ और धारा है । क०१॥ खुदीसे नाथ तूं न्यारा, खुदीने जग सताया है। खुदीके दूर करने को, मुझे तेरा सहारा ॥ करो०२॥ मिला मैं नाथ गैरोंसे, गमाया नूर मैं अपना । रिहाई पाने को इनसे, किया मैंने किनारा है ॥ करो० ३॥ हरि हर राम और अल्ला, बुद्ध अरिहंत या ब्रह्मा । अनलहक सच्चिदानंदी, विला तास्सुब निहारा है । क०४॥ मेरे प्रभु शांतिके दाता, जगतमें नाम है रोशन । करी जगमें प्रभु शांति, तेरा शांति नजारा है । क० ५॥ आतम लक्ष्मी गगन भेदी, अलख जलवा प्रभु तेरा। परमज्योति श्रुति वल्लभ, मिला नहीं हर्ष पारा है ।। क०६॥ उन्नीसौ एक कम अस्सी, एकादशी सूर्यके दिनमें । समाना माघ उजियारा, प्रभु गादी पधारा है ॥ करो० ७ ॥
॥ इति ।।
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