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निर्जरा मेरुके समान अचल और साम्यभावके साथ करनमें कटिबद्ध थे। इस प्रकार विचरण करते करते अपरिमित कायिक और मानसिक कष्टोंको प्रसन्नचित सहते सहते प्रभुने अपना नवमां चतुर्मास उसी लाट देशमें बिता दिया। गोश लाने भी प्रभुके साथ साथ सभी कष्ट शक्ति अनुसार सहे। चतुर्मास पूर्ण हो जाने पर प्रभुने उस अनार्य देशसे विहार कर दिया।
तेजो लेश्या और आजीविका सिद्धान्त
अनार्य देशसे भगवान महावीर कूर्म गांवमें पधार । उस गांवमें वैशायन नामका एक तपस्वी रहता था जो दो दो दिनके उपवासकी तपस्या करता था और सूर्याभिमुख होकर ध्यानमें स्थिर रहता था। उसके सिरकी बड़ी बड़ी जटाओं में जूएभी रगने लगी थी। इस उग्र तपस्याके यथावत प्रभावसे उसे तेजोलेश्या की सिद्धी हो चुकी थी जिसके द्वारा अग्निकी ज्वालाएं प्रगट होकर मनुष्य को भस्म कर सकती थीं।
एक दिन गोशालाभी घूमते-घूमते वहां से निकला। उसने उस तपस्वीको देखकर तिरस्कार किया और उसकी तपस्याकी घोर निन्दाकी और हंसी उड़ाई । तबतो वह तपस्वी गोशालाके प्रति क्रुद्ध होकर अपनेको न सम्हाल सका और उसी समय उसने अपने तपोवलसे तेजोलेश्या नामक तपोशक्ति गोशालाके विरुद्ध छोड़ी । उस अग्निकी भयंकर ज्वालाएं नव गोशालाके निकट पहुंचने लगी तब तो वह भयभीत हो वहां से भागा और शीघ्राति शीघ्र भगवान महावीरके पास आकर चिल्लाने लगा 'भगवन् ! मुझे बचाइये, मुझे बचाइये, मैं तो भस्म हुआ जाता हूं इत्यादि ।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com