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दुःखदायक और अवर्णनीय थी परन्तु धीर गंभीर भगवानने उसे हंसते हंसते हर्ष एवं शान्त पूर्वक सहन करली।
दूसरी ओर बनदवियां भी उसी विलेपन की महकसे उसी स्थान पर पहुंची जहां प्रभु महावीर थे। वे भी प्रभुके लावण्य शरीरमें उठती हुई तरूणाई को और प्रेम भरी चितवनको निहारकर मोहित होगई और उन्हें अपने मोहंजालमें फसानेके लिये अनेक प्रकारके लुभाने वाले हाव भाव दिखलाने लगी। परन्तु जिस प्रकार फूलकी पंखुरियां हीरेको बेध नहीं सकती उसी प्रकार बनदेवियांभी प्रभुके पवित्र सुन्दर भावोंपर रंच मात्रभी असर न कर सकी । प्रभु अपने निश्चयमें मेरुपर्वतके समान अटल रहे।
ऐसी अनोखी वैराग्य मुद्राका उन युवतियों पर इतना प्रभाव पड़ा कि वे लजित हो अपने सौन्दर्य के प्रति ग्लानि करने लग गई । उनके रूप लावण्य युक्त देहाभिमान चूर-चूर होगया और उसी क्षण उनमें शुभभावनाओं का संचार होने लगा। सच है पारसकी संगतिमें लोहाभी सोना बन जाता है। ___ इसप्रकार उन शान्तिमुर्ति भगवानने दोनों उपसर्गोको समभाव से सहन किया । अर्थात् मांस तक काटनेवाले भ्रमरों पर किसी तरहका द्वेष नहीं और मनको लुभानेवाली देवियोंके हावभावपर राग नहीं किया । यही तो भगवान महावीरकी अनुपम सहिष्णुता एवं वरिताका आदर्श नमूना है ।
इस तरह मार्गमें उपसर्गों का सामना करते करते जब दो घड़ी दिन रह गया तब प्रभुने कुमार गांवके निकट एकान्त स्थानमें ठहरनेका निश्चय किया और वहीं जाकर नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर ध्यानमें खड़े हो गये। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com