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भगवान महावीर के पहिले
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यह तो हम पूर्व ही बता चुके हैं कि यह अवसर्पिणो काल है जिसमें चौबीस तीर्थकर हुए हैं। उनमें से भगवान महावीरका स्थान अन्तिम तीर्थंकरका है । इनके ढाई सौ वर्ष पूर्व भगवान पार्श्वनाथ स्वामी, तेवीसवें तीर्थकर हुए है। बस इन्हींके बादका काल भारतके इतिहासमें कालिमासे पुता हुआ है।
भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के मोक्ष जाने तक भारत वर्ष में जैन धर्मका भारी उद्योत था । इसी समय में बड़े २ ब्राह्मण इसधर्म के धुरंधर पंडित थे । बड़े २ राजा और महाराजा लोगभी इसी धर्मका पालन करते थे । कर्नल टाड साहेबने अपने राजस्थानीय इतिहासमें लिखा है कि भारतवर्षमें एक समय ऐसा था कि सारे देश में जैन राजा राज्य करते थे और उस समय उनके राज्यों में पूर्ण शान्ति थी। संभव है कि पीछे बतलाई हुई जैन संख्या इसी समय में इतने विशाल रूममें रही हो ।
आगे चलकर टाड साहब पुनः लिखते हैं कि जैन लोग हिमालय से लेकर कन्या कुमारी तक और उससे भी आगे लंका द्वीप तक और करांचीसे लेकर बंगाल, ब्रह्मदेश, स्याम और जावादि देशों तक फैले हुए थे। अनेक देशोंका व्यापार भी इन्हीं लोगोंके अधीन था। प्रत्येक प्रान्तमें उसी समयके बड़े २ जैन
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